एक पहाड़ की तलहटी में एक साधारण पत्थर पड़ा था। वह लाखों सालों से उसी तरह पड़ा हुआ था, धूप में सेंकता, बारिश में भीगता, सर्दी में सिहरता। उसे लगता था, वह बस यही है, कुछ और नहीं बन सकता।
एक दिन एक मूर्तिकार वहां आया। उसने उस पत्थर को देखा और आँखों में चमक आ गई। उसने उससे कहा, "बूढ़े पत्थर, तुम सिर्फ पत्थर नहीं हो, तुम एक खूबसूरत मूर्ति बन सकते हो। बस मुझे तुम्हें तराशने दो।"
पत्थर हतप्रभ था। उसने कहा, "मैं सिर्फ एक पत्थर हूँ। मैं क्या खूबसूरत बन सकता हूँ? तुम मेरी खुरदरी सतह और बेढब वजूद को नहीं देख पा रहे हो।"
मूर्तिकार ने हँसते हुए कहा, "अंदर मत देखो, पत्थर। बाहर की खुरदरी सतह तो टूट जाएगी। मैं तुम्हारे अंदर देख रहा हूँ, वहाँ एक खूबसूरत मूर्ति छिपी है। बस मुझे उसे बाहर लाने दो।"
पत्थर फिर भी झिझकता रहा। उसे अपने अस्तित्व पर यकीन नहीं था। लेकिन मूर्तिकार ने धीरे-धीरे उसे तराशना शुरू किया। हर हथौड़े के वार के साथ, पत्थर को दर्द तो होता था, लेकिन एक नया आकार भी उभरता था।
हफ्तों बीतते गए, हथौड़े और छेनी की आवाजें लगातार गूंजती रहीं। पत्थर की शिकायतें कम होती गईं, उनकी जगह उत्सुकता ने ले ली। वह धीरे-धीरे अपने अंदर छिपी खूबसूरती को महसूस करने लगा।
आखिरकार एक दिन, तराशने का काम पूरा हुआ। पत्थर अब एक खूबसूरत मूर्ति बन चुका था। उसकी आकृति दिव्य थी, चेहरे पर शांति झलकती थी। जब सूरज की किरणें उस पर पड़ीं, तो वह चमक उठा।
पत्थर अब वही नहीं था। वह अब एक साधारण पत्थर नहीं, बल्कि भक्तों की श्रद्धा का केंद्र था। लोग उसके सामने झुकते, प्रार्थना करते और उससे शक्ति पाते।
पत्थर की मूर्ति की कहानी हमें सिखाती है कि हम भी उसी पत्थर की तरह हैं। हमारी अंदरूनी खूबसूरती अक्सर छिपी होती है, हमें सिर्फ खुद पर यकीन करना होगा और तराशने की हिम्मत रखनी होगी। हर चुनौती, हर मुश्किल, हमें और भी बेहतर बनाती है। तो आइए, हम भी अपने अंदर की खूबसूरती को बाहर लाएं और दुनिया को रोशन करें।